Rajiv dixit ayurvedic treatment

आयुर्वेदिक चिकित्सा (Medicina ayurvédica)

बीमारियाँ दो प्रकार की होती हैं – Rajiv Dixit Ayusvedic treatment 

स्वदेशी चिकित्सा राजीव दीक्षित आयुर्वेदिक उपचार  (Rajiv dixit ayurvedic treatment)

परिचय

  • भारत में जिस शास्त्र की मदद से निरोगी होकर जीवन व्यतीत करने का ज्ञान मिलता है उसे आयुर्वेद कहते है। आयुर्वेद में निरोगी होकर जीवन व्यतीत करना ही धर्म माना गया है। रोगी होकर लंबी आयु को प्राप्त करना या निरोगी होकर कम आयु को प्राप्त करना दोनों ही आयुर्वेद में मान्य नहीं है। इसलिए जो भी नागरिक अपने जीवन को निरोगी रखकर लंबी आयु चाहते हैं, उन सभी को आयुर्वेद के ज्ञान को अपने जीवन में धारण करना चाहिए।(Rajiv dixit ayurvedic treatment)
  • निरोगी  रोगी व्यक्ति किसी भी तरह का सुख प्राप्त नहीं कर सकता हैं। रोगी व्यक्ति कोई भी कार्य करके ठीक से धन भी नहीं कमा सकता हैं। हमारा स्वस्थ शरीर ही सभी तरह के ज्ञान को प्राप्त कर सकता हैं।
  •  शरीर के नष्ट हो जाने पर संसार की सभी वस्तुएं बेकार हैं। दुनिया में आयुर्वेद ही एक मात्र शास्त्र या चिकित्सा पद्धति है जो मनुष्य को निरोगी जीवन देने की गारंटी देता है।  (Rajiv dixit ayurvedic treatment)

बीमारियाँ दो प्रकार की होती हैं – Rajiv Dixit Ayusvedic treatment 

बीमारियाँ दो प्रकार की होती हैं –

1. वे जिनकी उत्पत्ति किसी जीवाणु बैक्टीरिया, पैथोजन, वायरस, फंगस आदि से होती हैं, उदाहरणार्थ क्षय रोग (टी.बी), टायफाईड, टिटनेस, मलेरिया, न्युमोनिया आदि। इन बीमारियों के कारणों का पता परीक्षणों से आसानी से लग जाता हैं।

2. वे जिनकी उत्पत्ति किसी भी जीवाणु, बैक्टीरिया, पैथोजन, वायरस, फंगस आदि से कभी भी नहीं होती। उदारणार्थ – अम्लपित्त, दमा, गठिया, जोड़ो का दर्द, कर्क रोग, कब्ज, बवासीर, मधुमेह, हृदय रोग, बवासीर, भगंदर, रक्तार्श, आधीसीसी, सिर दर्द, प्रोस्टेट आदि। इन बीमारियों के कारणों का पता नहीं लग पाता।

जब तक हमारे शरीर में वात, पित्त व कफ का एक प्राकृतिक विशिष्ट संतुलन रहता हैं, तब तक हम बीमार नहीं पड़ते, यह संतुलन बिगड़ने पर ही हम बीमार पड़ते है व यदि संतुलन कहीं ज्यादा बिगड़ जाये तो मृत्यु तक हो सकती है, बीमार होने के कारण निम्नलिखित हैं। (Rajiv dixit ayurvedic treatment)

1. भोजन व पानी का सेवन प्राकृतिक नियमों के अनुसार न करना। इस गलती के कारण शरीर में 80 प्रकार के वात रोग, 40 प्रकार के पित्त रोग व 20 प्रकार के कफ रोग उत्पन्न होते हैं।

2. भोजन दिनचर्या व ऋतुचर्या के अनुसार ना करना

3. विरूद्ध आहार का सेवन

4. रिफाइंड तेल, रिफाइंड नमक, चीनी व मैदा आदि का सेवन

5. मिलावटी दूध, घी, मसाले, तेल इत्यादि का सेवन ।

6. अनाज, दालें, फल, सब्जी इत्यादि में छिड़के गये रासायनिक खाद, कीटनाशक व       जंतुनाशक इत्यादि का शरीर में पहुँचना। (Rajiv dixit ayurvedic treatment)

7. प्राकृतिक/नैसर्गिक वेगों को (भूख, प्यास, मलमूत्र निष्कासन आदि) रोकना।

8. विकारों (क्रोध, द्वेष, अंहकार) आदि को पनपने देना।

1- कब्ज

आयुर्वेदिक चिकित्सा (Medicina ayurvédica) ​ हमारे द्वारा भोजन ग्रहण करने के बाद उसका पाचन संस्थान द्वारा पाचन होता हैं। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की रूकावट होती हैं, तो फिर भोजन सही ढंग से नहीं पचता तथा अपच होती है और फिर कब्ज होती हैं। सही ढंग से मल का न निकलना कब्ज कहलाता हैं।
  • सौंठ+काली मिर्च+पीपल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें, सुबह-शाम एक-एक चम्मच लें। कब्ज दूर होगी।
  • रात में दूध के साथ दो चम्मच ईसबगोल खाने से कब्ज में आराम मिलता हैं।
  • रात को गर्म दूध के साथ एक चम्मच त्रिफला लेने से कब्ज दूर होगा।
  • भोजन के साथ सुबह शाम पपीता खाने से कब्ज दूर होता हैं।
  • सौंठ + हरड़ + अजवायन को समान मात्रा में पानी में उबालें तथा वह पानी लेने से कब्ज दूर होगा।  (Rajiv dixit ayurvedic treatment)

2 - पेट दर्द, एसिडिटी (Acidez)

पेट में कब्ज के दौरान अम्लपित्त बनने लगता हैं। खट्टी डकारें आती हैं। पेट में भारीपन लगता हैं। कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती।

1. अजवायन का चूर्ण शहद में मिलाकर लेने से बदहजमी दूर होती हैं।

2. अजवायन और नमक की फंकी गर्म पानी के साथ लें।

3. एक ग्राम सौंठ के चूर्ण में चुटकी भर हींग और सेंधा नमक मिलाकर सुबह शाम पानी के साथ सेवन करें। Rajiv dixit ayurvedic treatment

3 - दस्त (Diarrhea)

  • पेट में कब्ज के दौरान अम्लपित्त बनने लगता हैं। खट्टी डकारें आती हैं। पेट में भारीपन लगता हैं। कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती।
  • अधिकांशतः कोल्ड फूड के कारण होता है। पेट में दर्द, मरोड़, ऐंठन होती है और कभी-कभी पैरों में ऐंठन या दस्त भी हो जाती है।                                 Rajiv dixit ayurvedic treatment

  1. भुने हुए जीरे का चूर्ण दही के साथ खायें।
  2. थोड़ी सी सौंफ तवे पर भूनकर उसका पावडर बनाकर मठे के साथ लें।
  3. तेजपात के पत्ते + दालचीनी 4 मात्रा कत्था का काढ़ा बनाकर पिलाने से दस्त तुरन्त बंद होते हैं।
  4. . चावलों का मांड तथा थोड़ा काला नमक और जरा सी भुनी हींग मिलाकर पीने से दस्त में लाभ मिलता हैं।
  5. 5.10 दाने तुलसी के बीज पीसकर गाय के दूध के साथ लें।

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4 - अल्सर(Ulcer)

  • पोस्टिक अल्सर एक तरह का घाव है जो पेट के अंदरूनी हिस्सों में, भोजन नली में और छोटे पेट में विकसित होता है। पेट में अल्सर के दौरान पेट में दर्द होता है और ये दर्द नाभि से लेकर छाती तक महसूस होता है, 
  • अल्सर के कारण पेट में जलन, दांत में दर्द के रूप में दर्द, ये दर्द हमारे पिछले हिस्से में भी हो सकता है। आमतौर पर पेट में दर्द तब होता है जब खाना खाने के कई घंटे बाद तक हमारा पेट खाली रहता है।                                                                                     Rajiv dixit ayurvedic treatment
  1. गुडंहल के लाल फूलों को पीसकर, पानी के साथ इसका शर्बत बनाकर पीए।
  2. गाय के दूध में हल्दी की कुछ मात्रा मिलाकर इसे प्रतिदिन पीये।
  3. बेल का जूस या बेलपत्र को पीसकर इसे पानी में घोलकर बनाए गए पेय का सेवन करने से अल्सर में लाभ मिलता हैं।

5 - पीलिया जॉन्डिस (Jaundice)

  • इसका मुख्य कारण शरीर में सही ढंग से खून ना बनना हैं। और इस कारण शरीर में पीलापन आ जाता है। 
  • सबसे पहले आँखों में पीलापन आता है उसके बाद उसके शरीर और मूत्र में पीलापन आ जाता है।
  •  भूख न लगना, खाने को देखकर उल्टी आना, मुंह का स्वाद खराब होना, नाड़ी का धीरे-धीरे चलना आदि लक्षण हैं।                                                                   Rajiv dixit ayurvedic treatment
  1. गिलोय के गुण एक-एक गुण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
  2. 10 ग्राम सौंठ का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम उपयोग करें।
  3. त्रिफला केश का काढ़ा बनाएं जिसमें मिश्री और घी मिलाकर सेवन करें।

6 - बवासीर (piles)

  • यह रोग मुख्यतः कब्ज के कारण होता हैं। जिन लोगों को कब्ज की शिकायत लंबे समय तक रहती हैं उनको मुख्यतः यह रोग होता हैं। 
  • बवासीर दो प्रकार की होती हैं। 1. खूनी बवासीर 2. बादी बवासीर। इस रोग में मल बहुत कठिनाई से निकलता हैं और मल के साथ खून भी निकलता हैं।               Rajiv dixit ayurvedic treatment
  1. आँवले चूर्ण 10 ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ लेने पर बवासीर में लाभ मिलता हैं।
  2. मूली का रस काला नमक डालकर पीने से भी आराम मिलता हैं।
  3. 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण शहद के साथ चाटें।
  4. काले तिल और ताजे मक्खन को समान मात्रा में मिलाकर खाने से बवासीर नष्ट होता हैं।
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7 - निम्न रक्त चाप (low blood pressure)

  • किसी व्यक्ति के भोजन में ना करने से या अधिक आयु होने से सबसे कम रक्त चाप होता है। यानि कि बुढापे में सामान्य रूप से यह बीमारी होती है। पाचन तंत्र ठीक नहीं होना, विफलता, विघटन और विनाशा से निम्नतम रक्त चाप होता है। चक्कर आना, थकान होना, नाड़ी का धीरे-धीरे चलना, मानसिक तनाव, हाथ-पैर ठंडे पड़ना इसके लक्षण हैं।                    Rajiv dixit ayurvedic treatment
  1. गुड़ पानी में मिलाकर, नमक डालकर, नीबू का रस मिलाकर दिन में दो तीन बार पीयें। 
  2. मिश्री में मक्खन मिलाकर खाये।
  3. पीपल के पत्तों का रस शहद में मिलाकर चाटें।
  4. कच्ची लहसुन का प्रयोग करें, प्रतिदिन एक या दो काली दातों से कुचलकर खायें।
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8 - उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure)

  • उच्च रक्तचाप हृदय, गुर्दे और रक्त संचालन प्रणाली की गड़बड़ी के कारण होता हैं। यह रोग किसी को भी हो सकता है। जो लोग क्रोध, भय, दुख या अन्य भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। 
  • उन्हें यह रोग अधिक होता है। जो लोग परिश्रम कम करते हैं और अधिक तनाव में रहते हैं, शराब या धूम्रपान अधिक करते हैं। इसमें सिर में दर्द होता है और चक्कर आने लगते हैं। दिल की नज़र तेज़ हो जाती है।
  •  नींद आना, जी घबराना, काम में मन न लगना, पाचन क्षमता कम होना, और आंखों के सामने अंधेरा आना, नींद न आना आदि लक्षण होते हैं।                             Rajiv dixit ayurvedic treatment
  1. कच्चे लहसुन की एक दो कली पीसकर प्रातः काल चाटने से उच्च रक्तचाप सामान्य होता हैं।
  2. उच्च रक्त चाप के रोगी को साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग लाभकारी होता हैं।    
  3. सौंफ, जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनायें तथा सुबह-शाम सादे पानी से लें आराम मिलेगा।
  4. आधा चम्मच दालचीनी, आधा चम्मच शहद मिलाकर गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सुबह लें।
  5. एक चम्मच अर्जुन की छाल का पाउडर, पानी में उबालकर पीयें।
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9 - हृदय में दर्द (Pain in the heart)

  • आजकल की जीवन शैली में, व्यापार में, घर में तनाव के कारण यह रोग अधिक होता है। हृदय में धमनियों द्वारा रक्त संचार मात्रा में नहीं होता है। धमनियों में रुकावट के कारण ही यह रोग होता हैं।
  1. कच्ची लोंकी का रस थोड़ा हींग, जीरा मिलाकर सुबह- शाम पीने से तत्काल लाभ मिलता हैं। 
  2. अर्जुन की छाल का 10 ग्राम पाउडर और पाषाणवैध का 10 ग्राम पाउडर लेकर 500 मिली पानी में उबालें और पानी आधा रहने पर ठंड़ा करके सुबह शाम पीयें। इससे हृदय घात की बीमारी दूर होती हैं।
  3. गाजर का रस निकालकर सूप बनाकर पीने से लाभ मिलता हैं।
  4. इस बीमारी में लहसुन का प्रयोग सर्वोत्तम हैं। खाने में कच्चे रूप में और कच्चे रूप में भी ले सकते हैं
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10 - मोटापा

  • जब शरीर में वसा की मात्रा बढ़ जाती है और वह शरीर में एक साथ हो जाता है तो उसी से मोटापा आ जाता है। वह समवेत वसा ही मोटापा हैं।
  •  मोटापा आने के बाद शरीर में सुस्ती बनी रहती है, थकान होने लगती है। इसी कारण शुगर, हृदय रोग, अपच, कब्ज आदि होने वाली बीमारियाँ होती हैं।              Rajiv dixit ayurvedic treatment
  1. सुबह-शाम खाली पेट गर्म पानी में नींबू निचोड़कर, सेंधा नमक मिलाकर पीयें।
  2. 10 ग्राम सौंठ को शहद में मिलाकर चाटने से भी मोटापा कम होता हैं।
  3. मूली के सलाद में नींबू और नमक मिलाकर प्रतिदिन लें,।
  4. खाने के बाद एक चुटकी काले तिल चबाकर खायें।
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11 - खाज खुजली (itching)

  • खाज-खुजली एक संक्रामक रोग है। जिस कारण त्वचा पर छोटी-छोटी फुन्सियां निकलती हैं और उनके पानी भी नवजात होते हैं। 
  • कभी-कभी पेट साफ न होने से, कब्ज रहने से और पेट में खून आने से भी ये खुजली पैदा हो जाती है।
  1. नारियल के तेल में थोड़ा सा कपूर मिलाकर गरम करें और खुजली वाले स्थान पर लगायें।
  2. गाय के घी में कुछ लहसुन मिलाकर गर्म करें और उसकी मालिश खुजली वाले स्थान पर करें।
  3. नींबू के रस में पके हुए केले को मसलकर खुजली वाले स्थान पर लगायें।
  4. भुने हुए सुहागे को पानी में कुल मिलाकर से खुजली में आराम मिलता है।
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Why is Rajiv Dixit famous?

Rajiv Dixit (30 November 1967 – 30 November 2010) was an Indian social activist who founded the Azadi Bachao Andolan. His organisation promoted a message of swadeshi-economics that opposed globalisation and neo-liberalism.

1. वे जिनकी उत्पत्ति किसी जीवाणु बैक्टीरिया, पैथोजन, वायरस, फंगस आदि से होती हैं, उदाहरणार्थ क्षय रोग (टी.बी), टायफाईड, टिटनेस, मलेरिया, न्युमोनिया आदि। इन बीमारियों के कारणों का पता परीक्षणों से आसानी से लग जाता हैं।

2. वे जिनकी उत्पत्ति किसी भी जीवाणु, बैक्टीरिया, पैथोजन, वायरस, फंगस आदि से कभी भी नहीं होती। उदारणार्थ – अम्लपित्त, दमा, गठिया, जोड़ो का दर्द, कर्क रोग, कब्ज, बवासीर, मधुमेह, हृदय रोग, बवासीर, भगंदर, रक्तार्श, आधीसीसी, सिर दर्द, प्रोस्टेट आदि। इन बीमारियों के कारणों का पता नहीं लग पाता।

  • रिफाइंड और डबल रिफाइंड तेल का उपयोग बिल्कुल ना करें, तेल को रिफाइंड करने के लिए उसमें से सारे प्रोटीन निकाल लिए जाते हैं। इसलिए आप शुद्ध चीज नही पर कचरा खाते हैं। 
  • रिफाइन्ड तेल काफी रोगों का कारण बनता है। इस तेल में पाम तेल भी डाला जाता है जो खतरनाक हैं। खाने में हमेशा शुद्ध तेल का इस्तेमाल करें। घाणी का तेल खाने में श्रेष्ठ हैं। शुद्ध तेल वायु को शांत करने में मदद करता हैं।

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