Natural Health Tips in Hindi
by Health Life
सूत्र 1- जिस भोजन को पकाते समय पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश नहीं वह भोजन उतना ही स्वादिष्ट होता है, ऐसा भोजन कभी नहीं होता।
राजीव भाई के अनुसार मतलब स्पष्ट है कि प्रेशर कूकर और माइक्रोवेव ओवन का इस्तेमाल न करें और रेफ्रीजिरेटर / फ्रिज में स्टोर किया गया भोजन कभी न करें।
सूत्र नंबर 1- "भोजनांते विषं वारी भाने भोजन के अंत में पानी पीना विष के सामान है।
भोजन को पचाने के लिए जठर में अग्नि प्रदीप्त होती है, जिसे जठराग्नि कहते हैं। भोजन के अंत में पानी पीने से जठराग्नि शांत होती है जिससे आपका भोजन पचता नहीं है इससे वायु (गैस) जाएगी। पेट में जलन, छाती में जलन, गले में जलन, पीठ या कमर में दर्द, सर में दर्द, एसीटी, हाइपरटेंशन एसिडिटी, अल्सर, बवासीर, मूडव्याध, भगंदर, उच्च रक्तचाप, हृदयघात आदि बीमारियाँ आएंगी, अंत में कैंसर और यह एक ग़लत से शरीर में 103 प्रकार के रोग पैदा होते हैं।
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सूत्र नंबर 2-पानी कब कितना पीना चाहिए। ?
1- भोजन करने के कम से कम 48 मिनट पहले पानी पियें और भोजन करने के डेड़ से दो घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए। भोजन के अंत में गला साफ करने के लिए एक दो घूँट पानी पी सकते हैं। दो अनाज जैसे रोटी और चावल खा रहे हों तो उनके बीच मैं जंक्शन प्वाइंट पर एक दो घूँट पानी पी सकते हैं।
2 – पानी जब भी पिए घूँट घूँट भरके पियें जिससे पानी के साथ मुख की लार भी पेट में जाती है जो कि पेट में बनने वाले अम्ल को शांत करने में सहायक होती है सुबह के भोजन के पश्चात फॉ का रस, दोपहर के भोजन के पश्चात तक्रम (छाछ) और शाम को भोजन के पश्चात रात्रि में गर्म दूध ले सकते हैं सुबह और गन्ने का रस भी ले सकते हैं। सुबह टमाटर और गन्ने का रस भी ले सकते हैं।
सूत्र नंबर 3- दिन के प्रारंभ में सबसे पहले बिना कुल्ला किये ऊषापान करना चाहिए।
ऊषापान के लिए तांबे के पात्र का पानी या फिर मिट्टी के पात्र में रखा हुआ पानी हल्का गरम यानी गुनगुना करके पीना चाहिए। रात भर जो लार मुंह में बनती है वह बहुत ही बहुमूल्य है इसलिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले वह लार पेट में जानी चाहिए। उठने का सर्वोत्तम समय सुबह 4:30 बजे का है।
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सूत्र नंबर 4- पानी जब भी पियें चाय की चुस्की की तरह ही घूंट घूंट करके पियें।
शरीर की प्रकृति के अनुसार पेट में सतत रूप से अम्ल बनता है जबकि मुंह में सतत रूप से बनने वाली लार की प्रवृत्ति क्षारीय होती है, जब हम घूंट घूंट करके पानी पीते हैं तो मुंह की लार पानी के साथ मिलकर पेट में पहुंचती है और पेट में पहुंचने के बाद यह पेट के अम्ल को न्यूट्रल कर देती है और भोजन के पाचन में अहम भूमिका निभाती है।
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सूत्र नंबर 5 - कभी भी ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए, पानी जब भी पियें शरीर के तापमान के अनुसार पियें। स्नान करने के लिए हमेशा प्राकृतिक ठंडे पानी का इस्तेमाल करें।
1- जब हम फ्रिज में रखा हुआ पानी पीते हैं (तापमान लगभग 10°C या उससे भी कम) तो पेट में पहुंचते ही यह पानी पेट को ठंडा करता है तो शरीर का सारा रक्त उस पानी को गरम करने के लिए पेट की तरफ आता है जिस कारण अन्य अंगों में रक्त की कमी हो जाती है इससे ब्रेन हैमरेज, हार्ट अटैक, लकवा जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं।
2- पेट ठंडा होने के कारण छोटी आंत और बड़ी आंत भी सिकुड़ती है जिससे मल त्याग करने में समस्या आयेगी और आपको बवासीर, भगंदर, मूड़व्याध जैसी भयंकर बीमारी आती हैं। यदि आप लगातार इस तरह ठंडे पानी का सेवन करते रहेंगे तो धीरे धीरे ये आपके रक्त को ठंडा करने लगेगा जिससे पूरा शरीर ठंडा होगा और आपकी राम नाम सत्य हो जायेगी।
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सूत्र नंबर 6 - खाने का सामान हमेशा ताजा होना चाहिए, अनाज/आटा रोज पिसा हुआ खायें तो अधिक अच्छा है।
बीमार होकर उपचार करवाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम बीमार ही ना पढ़ें इसलिए भोजन में निम्न बातों का ध्यान रखें-
1- कभी भी गेहूँ का आटा पिसा हुआ पन्द्रह दिन से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए और चने, ज्वार, बाजरा, मक्के आदि का आटा सात दिन से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए। पिसा हुआ आटा जितना पुराना होगा उसके पोषक तत्व उतने कम होते जायेंगे।
सूत्र नंबर 7- भोजन पकने के 48 मिनट में भोजन कर लें।
अड़तालीस मिनट (52 पल) के बाद भोजन के पोषक तत्व कम होने लगते हैं और चौबीस घंटे के बाद वह भोजन जानवरों के खाने के योग्य भी नहीं रहता है। नूडल्स, पिज्जा, बर्गर पावरोटी, डबल रोटी, बिस्किट आदि कभी नहीं खायें क्योंकि ये सब सड़े हुए मैदे से बनते हैं और मैदा कई कई दिनों का बासी होता है फिर इसमें टेस्ट लाने के लिए जानवरों की चर्बी का रस मिलाते हैं।

सूत्र नंबर 8- भोजन करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उस भोजन का पाचन हो।
जिस प्रदेश या स्थान में जिस तरह का अनाज, सब्जी या दालें पैदा हो सकती हैं उन्हीं को अपने भोजन में शामिल करें। प्रकृति के विरुद्ध भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
सूत्र नंबर 9- भोजन का समय निश्चित करें।
1- जठराग्नि सुबह सूर्योदय से ढाई घंटे तक लगभग 7:00 से साढ़े नौ बजे तक सर्वाधिक होती है। सुबह का नाश्ता बंद करके सुबह भरपेट भोजन करने की आदत डालें,
2- शाम का भोजन सूर्यास्त से चालीस मिनट पहले तक कर डालें (लगभग 5 से 6 बजे तक)। दिन में यदि भूख लगे तो गुड़ मूंगफली, तिल गुड़ आदि का सेवन करें चाहें तो हल्का भोजन कर सकते हैं। सुबह का भोजन हैवी करें जबकि दोपहर को आधा पेट और शाम को चौथाई पेट ही भोजन करें।

सूत्र नंबर 10- भोजन हमेशा जमीन पर बैठकर करें।
जब आप सुखासन में बैठते हैं तब शरीर में लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल का केंद्र नाभि पर होता है क्योंकि नाभि हमारे शरीर का केंद्र बिंदु है और नाभि के पास ही जठर होता है, इस कारण पाचक रस भी अच्छा बनेगा। पाचक रस अच्छा बनने से रक्त, मॉस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य सब अच्छा बनेगा। भोजन की थाली सदैव बैठने के स्थान से कुछ ऊंचाई पर होनी चाहिए।

सूत्र नंबर 11- दो विरोधियों का एक साथ सेवन कभी नहीं करना चाहिए। ऐसी 103 सड़कों के खिलाफ हैं।
दूध के साथ किसी भी रसयुक्त खट्टे फलों का सेवन ना करें।
1- दूध – प्याज, दूध – कटहल, दूध माँस व मछली, दूध खट्टी वस्तु, दूध दही, दही ककड़ी, दही द्विदलीय सामग्री (दाल), दही उड़द की दाल का बड़ा, दही आयोडीन नमक, दूध आयोडीन नमक, दही लहसून, घी शहद।
2- यदि किसी मजबूरी में दही और द्विदलीय दाल खानी पड़ती है तो दही की तासीर बदल लें यानि जीरे का छौंक देकर दही का सेवन करें लेकिन उड़द की दाल के साथ या उरद की दाल के बड़े के साथ कभी भी दही का सेवन न करें।

सूत्र नंबर 12- भोजन के बाद कम से कम दस मिनट तक वज्रासन में बैठना चाहिए।
सुबह और दोपहर के भोजन के बाद कम से कम बीस मिनट और अधिक से अधिक चालीस मिनट से एक घंटे तक अवश्य लेटें (वामकुक्षी अवस्था यानि विष्णु मुद्रा में लेटना चाहिए) इससे चंद्र नाड़ी और सूर्य नाड़ी दोनों तेज हो जाती हैं और रक्त को भोजन पचाने में मुश्किल नहीं होती है। सायंकाल के भोजन के बाद कभी भी आराम नहीं करना चाहिए। शाम को भोजन के बाद कम से कम एक हजार कदम अवश्य चलना चाहिए।

सूत्र नंबर 13- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ हैं।
शारीरिक श्रम 60 वर्ष की उम्र तक कम नहीं करना चाहिए। 1-18 वर्ष की उम्र तक यह श्रम खेलने के रूप में है और 18-60 वर्ष तक उत्पादकता बढ़ाने के लिए यह श्रम करना चाहिए। 60 वर्ष के बाद धीरे धीरे श्रम कम करते जायें और आराम अधिक करें। प्रातः काल की वायु शुद्ध रहती है इसलिए आत्मशुद्धि के लिए प्रातः काल योग और ध्यान करें। धर्म की मर्यादा में रहकर अर्थ सम्पादन करें, कामनाओं की पूर्ति करें और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयास करें क्योंकि सांसारिक व्यक्ति ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

सूत्र नंबर 14- हमेशा पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर सिर करके ही सोयें। उत्तर दिशा मृत्यु की दिशा होती है।
1- जिस प्रकार पृथ्वी की उत्तर दिशा में धनावेश और दक्षिण दिशा में ऋणावेश रहता है उसी तरह हमारे सिर की ओर धनावेश और पांवों की ओर ऋणावेश रहता है। इसलिए यदि आप उत्तर की ओर सिर रखकर सोयेंगे तो तो समान आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करेंगे जिससे शरीर में दबाव उत्पन्न होगा, सिर व शरीर पर संकुचन आयेगा एवं मानसिक बीमारियों का आगाज होगा।
2- यदि आप दक्षिण दिशा की ओर सिर जोड़ रहे हैं तो दो विपरीत आवेश एक साथ आयेंगे जिससे शरीर में संयोजन बनेगा , इससे सुख की नींद आती है और मानसिक रोग नहीं होता। पूर्व की दिशा में कोई आवेश नहीं होता इसलिए पूर्व में सिर रखकर सोना उत्तम है।
3- ग्रहस्थ जीवन जीने वाले लोगों को दक्षिण दिशा की तरफ एवं ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले या संन्यासी जीवन व्यतीत करने वाले लोगों को पूर्व दिशा में सिर रखकर सोना चाहिए। जब आप वैवाहिक जीवन की शुरुआत कर रहे हैं तो आपका एवं आपके जीवनसाथी का सिर दक्षिण दिशा की तरफ रहना चाहिए।
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सूत्र नंबर15 - आपके शरीर पर वात, पित्त और कफ की प्रकृति को समझ कर आप स्वयं ही बाकी पन्द्रह प्रतिशत गम्भी का इलाज भी कर सकते हैं।
1 – भोजन में हमेशा शुद्ध तेलों का – ही प्रयोग करें, शुद्ध तेल यानि जो तेल कच्ची घानी का निकला हुआ हो। क्योंकि शुद्ध तेल वात, पित्त और कफ को शांत रखता है।
2 – तेल का चिपचिपापन और – गाढ़ापन ही उसे तेल बनाता है यह तेल का महत्वपूर्ण घटक है जिसे फैटी एसिड कहते हैं। तेल की गंध ही तेल का पोषक तत्व है। तेल को रिफाइंड करने के लिए 6-7 कैमिकल लगते हैं और डबल रिफाइंड करने के लिए 12- 13 कैमिकल लगते हैं। तेल से चिपचिपापन और गंध खतम होते ही तेल के महत्वपूर्ण घटक फैटी एसिड और सारे पोषक तत्व खतम हो जाते हैं जिससे तेल, तेल न रहकर जहर बन जाता है और यही रिफाइंड तेल हमारे अधिकांश रोगों का मूल कारण है
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राजीव भाई के व्याख्यानों पर आधारित अन्य महत्वपूर्ण नियम-
सूत्र नंबर 16- भोजन में आयोडीन नमक हटाकर काला नमक या सेंधा नमक शामिल करें।
1- आयोडीन नमक ब्लड प्रेशर बढ़ाता है, नपुंसकता आती है और वीर्य में शुक्राणुओं की कमी होती है। रिफाइंड नमक कभी भी न खायें क्योंकि रिफाइंड करने के दौरान नमक से सारे पोषक तत्व निकल जाते हैं। नमक को एक्सट्रा फ्री फ्लो बनाने के लिए उसमें एलुमिनियम सिलिकेट डाला जाता है जिससे अस्थमा की समस्या होती है।
2- सैंधव नमक में सोडियम कम रहता है और मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम आदि का अनुपात संतुलित रहता है जिससे थायरॉइड, लकवा मिर्गी आदि बीमारियों में रोकथाम होती है और शरीर के अंदर विष कम होता है।
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सूत्र नंबर 17- कभी भी शक्कर का प्रयोग न करें क्योंकि शक्कर एक सफेद जहर है।
शक्कर बनते ही फॉस्फोरस खतम हो जाता है जबकि गुड़, काकवी, बूरा और खांड में फॉस्फोरस रहता है जो कि एक महत्वपूर्ण सूक्ष्म तत्व है। शक्कर जब टूटता है तो शरीर में एसिड बनता है जो कि बहुत सारी बीमारियां लेकर आता है। शक्कर खून को गाढ़ा बनाता है और शरीर में कोलेस्टरॉल बढ़ाता है और यह भोजन को पचने नहीं देता है जिससे शरीर में 103 बीमारियां आती हैं।
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सूत्र नंबर 18 - चलते समय दोनों पांवों पर बराबर भार पढ़ना चाहिए पहले एड़ी फिर तलवा और फिर पंजा जमीन पर रखे।
हमेशा जमीन पर सोना चाहिए, दोपहर को भोजन के बाद पहले दांयी करवट फिर बांयी करवट लेकर सोयें उसके बाद सीधे सोयें जबकि रात में पहले बांयी करवट फिर दांयी करवट उसके बाद सीधे सोयें। नीद लेने के लिए पीठ के बल सोना सबसे अच्छा है। सर, पीठ, कूल्हे, जंघा, पिण्डली, एड़ी जमीन पर लगनी चाहिए। बांस की चटाई या घास की चटाई पर सोना सर्वोत्तम है।
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सूत्र नंबर 19- बहुत से लोग नशा छोडना चाहते है पर उनसे छूटता नहीं है, तलब उठ जाती है तो क्या करें?
अदरक के छोटे छोटे टुकड़े कर लो और उसमें नींबू निचोड़ लो और थोड़ा सा काला नमक मिला दो और इसको अब धूप में सूखा लो। सुखाने के बाद जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को किसी डिब्बी आदि में भरकर अपनी जेब में रख लो। जब भी आपको गुटका, तम्बाकू या किसी भी तरह के व्यसन की तलब उठाती है तो एक टुकड़ा मुंह में रख लो। जैसे ही इसका रस मुंह लाड़ में घुलना शुरू होगा
आप के अन्दर सात्विकता आनी प्रारंभ हो जायेगी, धीरे-धीरे आपको गुटका – तंबाकू शराब – बीड़ी सिगरेट आदि की इच्छा ही नहीं होगी।
सुबह से शाम तक यही अदरक चूसते रहो और 15-20 दिन लगातार कर लिया तो हमेशा के लिए नशा आपका छूट जाएगा।
सूत्र नंबर 20- 3 नियम Natural Health Tips
1- भोजन के लिए बैठने की दिशा हमेशा पूर्व या उतर दिशा रखें, कभी भी दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके भोजन ग्रहेण न करें।
2- घर से निकलते समय पहले दांया पैर आगे रखें और घर में घुसते समय भी दांया पैर ही आगे रखें।
3-मल या मूत्र विसर्जन के समय मुंह दक्षिण दिशा की ओर रहना चाहिए।
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