स्वस्थ रहने की कुंजी घरेलू 

स्वस्थ रहने की कुंजी घरेलू 

  1.  बहुत तेज या धीमी रोशनी में पढ़ना, अत्यधिक टी। वी या सिनेमा देखना अधिक गर्म-ठंडी चीजों का सेवन करना, अधिक मिर्च मसालों का प्रयोग करना, तेज धूप में चलना इन सबसे बचना चाहिये। यदि तेज धूप में चलना भी हो तो सर और कान पर कपड़ा बांधकर चलना चाहिये

कृपया इनका अवश्य ध्यान रखें।

  1. फलों का रस, अत्यधिक तेल की चीजें, मट्ठा, खट्टी चीजें रात में नहीं खानी चाहिये।

  2. घी या तेल की चीजें खाने के बाद तुरंत पानी नहीं पीना चाहिये बल्कि एक-डेढ़ घण्टे के बाद पानी पीना चाहिये। 
  3. भोजन के तुरंत बाद अधिक तेज चलना या दौड़ना हानिकारक है। इसलिये कुछ देर आराम करके ही जाना चाहिये।
  4. शाम को भोजन के बाद शुद्ध हवा में टहलना चाहिये खाने के तुरंत बाद सो जाने से पेट की गड़बड़ियाँ हो जाती हैं।
  5.  प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिये और खुली हवा में व्यायाम या शरीर श्रम अवश्य करना चाहिये।
  6.  तेज धूप में चलने के बाद, शारीरिक मेहनत करने के बाद या शौच जाने के तुरंत बाद पानी कदापि नहीं पीना चाहिये।
  7.  केवल शहद और घी बराबर मात्रा में मिलाकर नहीं खाना
  8. चाहिये वह विष हो जाता है।
  9. खाने पीने में विरोधी पदार्थों को एक साथ नहीं लेना चाहिये जैसे दूध और कटहल, दुध और दही, मछली और दूध आदि चीजें एक साथ नहीं लेनी चाहिये।
  10. सिर पर कपड़ा बांधकर या मोजे पहनकर कभी नहीं सोना चाहिये।
  11.  बहुत तेज या धीमी रोशनी में पढ़ना, अत्यधिक टी। वी या सिनेमा देखना अधिक गर्म-ठंडी चीजों का सेवन करना, अधिक मिर्च मसालों का प्रयोग करना, तेज धूप में चलना इन सबसे बचना चाहिये। यदि तेज धूप में चलना भी हो तो सर और कान पर कपड़ा बांधकर चलना चाहिये
fruits
  1. रोगी को हमेशा गर्म अथवा गुनगुना पानी ही पिलाना चाहिये। और रोगी को ठंडी हवा, परिश्रम, तथा क्रोध से बचाना चाहिये।
  2. आयुर्वेद में लिखा है कि निद्रा से पित्त शांत होता है, मालिश से वायु कम होती है, उल्टी से कफ कम होता है और लंघन करने से बुखार शांत होता है। इसलिये घरेलू चिकित्सा करते समय इन बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिये।
  3. आग या किसी गर्म चीज से जल जाने पर जले भाग को ठंडे पानी में डालकर रखना चाहिये।
  4. कान में दर्द होने पर यदि पत्तों का रस कान में डालना हो तो सुर्योदय के पहले या सुर्यास्त के बाद ही डालना चाहिये।
  5. किसी भी रोगी को तेल, घी या अधिक चिकने पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये।
  6. अजीर्ण तथा मंदाग्नि दूर करने वाली दवाएँ हमेशा भोजन के बाद ही लेनी चाहिये।
  7. मल रुकने या कब्ज होने की स्थिति में यदि दस्त कराने हों तो प्रातःकाल ही कराने चाहिये, रात्रि में नहीं।
  8. यदि घर में किशोरी या युवती को मिर्गी के दौरे पड़ते हों तो उसे उल्टी, दस्त या लंघन नहीं कराना चाहिये।
  9. यदि किसी दवा को पतले पदार्थ में मिलाना हों तो चाय,कॉफ़ी, या दूध में न मिलाकर छाछ, नारियल पानी या सादे पानी में ही मिलाना चाहिये।
  10. हींग को सदैव देशी घी में भून कर ही उपयोग में लाना चाहिये। लेप में कच्ची हींग लगानी चाहिये।

त्रिदोष सिद्धान्त

आयुर्वेद में ‘त्रिदोष सिद्धान्त’ की विस्तृत व्याख्या है; वात, पित्त, कफ-दोषों के शरीर में बढ़ जाने या प्रकुपित होने पर उनको शांत करने के उपायों का विशद् वर्णन हैं; आहार के प्रत्येक द्रव्य के गुण-दोष का सूक्ष्म विश्लेषण है; ऋतुचर्या-दिनचर्या, आदि के माध्यम में स्वास्थ्य-

रक्षक उपायों का सुन्दर विवेचन है तथा रोगों से बचने व रोगों की चिरस्थायी चिकित्सा के लिए पथ्य-अपथ्य पालन के लिए उचित मार्ग दर्शन है। आयुर्वेद में परहेज-पालन के महत्व को आजकल आधुनिक डाक्टर भी समझने लग गए हैं और आवश्यक परहेज-पालन पर जोर देने लग गए हैं। लेखक का दृढ़ विश्वास है कि साधारण व्यक्ति को दृष्टिगत रखते हुए यहां दी जा रही सरलीकृत जानकारी से उसे रोग से रक्षा, रोग के निदान तथा उपचार में अवश्य सहायता मिलेगी ।

वात-पित्त-कफ रोग लक्षण

पित्त रोग लक्षणः पेट फुलना दर्द दस्त मरोड गैस, खट्टी डकारें,

ऐसीडीटी, अल्सर, पेशाब जलन, रुक रुक कर बूंद-बूंद बार-बार पेशाब, पथरी, शीघ्रपतन, स्वप्न दोष, लार जैसी घात गिरना, शुक्राणु की कमी, बांझपन, खुन जाना, ल्यूकोरिया, गर्भाशाय ओवरी में छाले, अण्डकोश बढना, एलर्जी खुजली शरीर में दाने शीत निकलना कैसा भी सिर दर्द मधुमेह से उत्पन्न शीघ्रपतन कमजोरी, इंसुलिन की कमी, पीलिया, खुन की कमी बवासीर, सफेद दाग, माहवारी कम ज्यादा आदि ।

वात रोग लक्षणः अस्सी प्रकार के बात, सात प्रकार के बुखार, घुटना कमर जोडो में दर्द संधिवात सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस, लकवा, गठिया, हाथ पैर शरीर कांपना, पूरे शरीर में सुजन कही भी दबाने से गड्डा हो जाना, लिंग दोष, नामर्दी, इन्द्री में लूजपन, नसों में टेढ़ापन, छोटापन, उत्तेजना की कमी, मंदबुद्धि, वीर्य की कमी, बुढ़ापे की कमजोरी, मिर्गी, चक्कर, एकांत में रहना आदि ।कफ रोग लक्षणः बार-बार सर्दी, खांसी, छींकें आना, एलर्जी, ईयोसिनोफिलिया, नजला, टी बी।, सीने में दर्द, घबराहट, मृत्यु भय, हार्ट अटैक के लक्षण, स्वास फुलना, गले में दर्द गांठ, सुजन, टांसिल, कैंसर के लक्षण, थायराइड, ब्लड प्रेषर, बिस्तर में पेशाब करना, शरीर

मुंह से बदबू, लीवर किडनी का दर्द सूजन, सेक्स इच्छा कमी, चेहरे का कालापन, मोटापा, जांघों का आपस में जुडना, गुप्तांग में खुजली, घाव, सुजाक, कान बहना, शरीर फुल जाना, गर्भ नली का चोक होना, कमजोर अण्डाणु आदि ।

वात-पित्त-कफ रोग लक्षण

 

पित्त रोग लक्षणः पेट फुलना दर्द दस्त मरोड गैस, खट्टी डकारें,

ऐसीडीटी, अल्सर, पेशाब जलन, रुक रुक कर बूंद-बूंद बार-बार पेशाब, पथरी, शीघ्रपतन, स्वप्न दोष, लार जैसी घात गिरना, शुक्राणु की कमी, बांझपन, खुन जाना, ल्यूकोरिया, गर्भाशाय ओवरी में छाले, अण्डकोश बढना, एलर्जी खुजली शरीर में दाने शीत निकलना कैसा भी सिर दर्द मधुमेह से उत्पन्न शीघ्रपतन कमजोरी, इंसुलिन की कमी, पीलिया, खुन की कमी बवासीर, सफेद दाग, माहवारी कम ज्यादा आदि ।

वात रोग लक्षणः अस्सी प्रकार के बात, सात प्रकार के बुखार, घुटना कमर जोडो में दर्द संधिवात सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस, लकवा, गठिया, हाथ पैर शरीर कांपना, पूरे शरीर में सुजन कही भी दबाने से गड्डा हो जाना, लिंग दोष, नामर्दी, इन्द्री में लूजपन, नसों में टेढ़ापन, छोटापन, उत्तेजना की कमी, मंदबुद्धि, वीर्य की कमी, बुढ़ापे की कमजोरी, मिर्गी, चक्कर, एकांत में रहना आदि ।कफ रोग लक्षणः बार-बार सर्दी, खांसी, छींकें आना, एलर्जी, ईयोसिनोफिलिया, नजला, टी बी।, सीने में दर्द, घबराहट, मृत्यु भय, हार्ट अटैक के लक्षण, स्वास फुलना, गले में दर्द गांठ, सुजन, टांसिल, कैंसर के लक्षण, थायराइड, ब्लड प्रेषर, बिस्तर में पेशाब करना, शरीर

मुंह से बदबू, लीवर किडनी का दर्द सूजन, सेक्स इच्छा कमी, चेहरे का कालापन, मोटापा, जांघों का आपस में जुडना, गुप्तांग में खुजली, घाव, सुजाक, कान बहना, शरीर फुल जाना, गर्भ नली का चोक होना, कमजोर अण्डाणु आदि ।

गले में कोई भी इन्फेक्शन, टौंसिल

गले में कितनी भी खराब से खराब बीमारी हो, कोई भी इन्फेक्शन हो, इसकी सबसे अच्छी दवा है हल्दी। जैसे गले में दर्द है, खरास है, गले में खासी है, गले में कफ जमा है, गले में टौंसिल हो गया, ये सब बिमारिओं में आधा चम्मच कच्ची हल्दी का रस लेना और मुह खोल कर गले में डाल देना, और फिर थोड़ी देर चुप होकर बैठ जाना तो ये हल्दी गले में नीचे उतर जाएगी लार के साथ, और एक खुराक में ही सब बीमारी ठीक होगी दुबारा डालने की जरूरत नहीं। ये छोटे बच्चों को तो जरूर करना य बच्चों के टोन्सिल जब बहुत तकलीफ देते है ना तो हम आपरेशन करवाकर उनको कटवाते है वो करने की जरूरत नही है हल्दी से सब ठीक होता है।
Tonsil

दमा, अस्थमा, ब्रोन्कियल अस्थमा

दमा, अस्थमा, ब्रोन्कियल अस्थमा छाती की कुछ बीमारियाँ जैसे दमा, अस्थमा, ब्रोन्कियल अस्थमा, टीबी, इनकी सबसे अच्छा दवा है :-

गाय मूत्र :- आधा कप देशी गाय का गोमूत्र सुबह पीने से दमा अस्थमा, ब्रोन्कियल अस्थमा सब ठीक होता है। और गोमूत्र पीने से टीबी भी ठीक हो जाता है, लगातार पांच छह महीने पीना पड़ता है।

ऐसा करने से गौमूत्र 1 में दमा, अस्थमा ठीक है

दमा अस्थमा : दमा अस्थमा की और एक अच्छी दवा है

दालचीनी, इसका पाउडर रोज सुबह आधे चम्मच खाली पेट गुड या शहद मिलाकर गरम पानी के साथ लेने से दमा अस्थमा ठीक कर देती है। ऐसा करने से गौमूत्र 3 में दमा, अस्थमा ठीक है

गर्भावस्था

जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चुना रोज खाना चाहिए क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा कैल्सियम की जरूरत होती है और चुना कैल्सियम का सबसे बड़ा भंडार है। गर्भवती माँ को चुना खिलाना चाहिए अनार के रस में – अनार का रस एक कप और चुना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाकर रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे – पहला फायदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नोर्मल डेलीभरी होगा, दूसरा बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हस्त-पुष्ट और तंदुरुस्त होगा, तीसरा फायदा वो बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नहीं पड़ता जिसकी माँ ने चुना खाया, और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होशियार होता है।

न्युमोनिया

  1. जब फेफड़ों में लगातार दर्द रहने लगे तो न्युमोनिया कहलाता है। यह मुख्य रूप से ठंड लग जाने के कारण तथा फेफड़ों में सूजन आ जाने से हो जाता है। सर्दी, गर्मी में परिवर्तन एकाएक पसीना आना, जीवाणुओं द्वारा संक्रमण आदि के कारण हो जाता है। इस बीमारी में फेफड़ों में कफ बढ़ जाता है। छाती में तेज दर्द रहता है। रोगी को बेहोशी आने लगती है। श्वास लेने में कष्ट होता है और खासी की भी शिकायत रहती है।
  2.  गिलोय काढ़ा पीना है।
  3. न्युमोनिया में होम्योपैथिक दवा Aconite-200 की 2 बूंद कप पानी में डालकर एक चम्मच में दिन तीन बार पिलाना है।
  4.  गो मूत्र की भाप नोबलाजर से लेनी है।
न्युमोनिया​

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  1. Pingback: भारतीय भोजन को सेहतमंद कौन बनाता है? - HEALTH LIFE

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